Lekhnee

Hindi me blogging ka mera prayas.

Saturday, March 25, 2006

आवाज्ञ में

आवाज्ञ में

आज फिर दर्द का इक नया रंग है
आज फिर इक हकीकत मेरे संग है

चाहा था नज्ञरें ज्ञरा फेर लूँ
दूर तक यूँ भी राहें मेरी बंद हैं

बेवफा जिन्दगी से शिकायत न की
इम्तहाने सबर का ये क्या ढंग है

जब्त और ताब मुझमें अगर है बहुत
दिल में छिङी फिर ये क्या जंग है

अश्क थम जायें तो फिर सदा दूं तुम्हें
आज आवाज्ञ में जिरह और तंज है

Thursday, March 23, 2006

एक और कल

एक और कल
अभी आने वाला है
जाने कितने कल
कल भी आने को थे
कल तक
वादा तो था
पर आये नहीं
अबके मगर
लगता है यूँ
कि कल ही यह कल
आयेगा जरूर

महक

कुछ पुराना लिखा यहाँ भी

महक

ऍसा होता है ये जुनूँ क्यूँकर
जैसे हम तुझपे अब भी मरते हों
इश्क की मस्तियों में भीगे हुए
तेरे खत पहली बार पढते हों

तेरी आगोश में यूँही छुप कर
रूठे रहने का ढोंग करते हों
लब शिकवे गिले लाखों
मान जाने की चाह करते हों

नींद आती नहीं है जब तुझ बिन
रोज रातों की बात करते हों
आँख बंद करको हम हथेली से
तेरे ख्वाबों की राह तकते हों

तेरे हाथों की उंगलियों की तरह
जैसे सीने पे फूल खिलते हों
तेरी नजरों की हर शरारत से
सोये अरमान जैसे जगते हों

तेरे होंठों सो मेरी पलकों पर
गर्म कोई नशा पिघलता हो
तेरी सांसों की महक छूने से
बहका बहका बदन ये जलता हो

ऍसा होता है ये जुनूँ क्यूँकर

Thursday, March 16, 2006

लेखनी

लेखनी क्या क्या कहती है
रचता सुनता है सब कौन
अक्षर शब्द भाव की लङियाँ
और बीच में पसरा मौन