आवाज्ञ में
आवाज्ञ में
आज फिर दर्द का इक नया रंग है
आज फिर इक हकीकत मेरे संग है
चाहा था नज्ञरें ज्ञरा फेर लूँ
दूर तक यूँ भी राहें मेरी बंद हैं
बेवफा जिन्दगी से शिकायत न की
इम्तहाने सबर का ये क्या ढंग है
जब्त और ताब मुझमें अगर है बहुत
दिल में छिङी फिर ये क्या जंग है
अश्क थम जायें तो फिर सदा दूं तुम्हें
आज आवाज्ञ में जिरह और तंज है
आज फिर दर्द का इक नया रंग है
आज फिर इक हकीकत मेरे संग है
चाहा था नज्ञरें ज्ञरा फेर लूँ
दूर तक यूँ भी राहें मेरी बंद हैं
बेवफा जिन्दगी से शिकायत न की
इम्तहाने सबर का ये क्या ढंग है
जब्त और ताब मुझमें अगर है बहुत
दिल में छिङी फिर ये क्या जंग है
अश्क थम जायें तो फिर सदा दूं तुम्हें
आज आवाज्ञ में जिरह और तंज है