Lekhnee

Hindi me blogging ka mera prayas.

Saturday, March 10, 2007

तुम ही हो ना

बिना झिझक सोचों के साये
गगन पार उङते जाते हैं
किसी साँवरी साँझ को जैसे
पे॒मी बहके ही जाते हैं

जीवन की राहों पर जब जब
चलते कहीं ठिठक जाती हूँ
और देखती हूँ मुङ मुङ के
पगडंडी पे बहक जाती हूँ

एक वावरा बांका झोंका
नरमी से सहला जाता है
नये मील का कोई पत्थर
कदमों से टकरा जाता है

कहीं खिली जूही की कलियाँ
रोम रोम महका जाती हैं
खो जाती हूँ अब भी अक्सर
यादें कुछ छलका जाती हैं

और कभी निश्चल बादल सी
दौङ रही हूँ जंगल पर्वत
कोई साथ साथ चलता है
नींद उनीदे करवट करवट

बेचैनी में राहत जैसा
कोई मुझे बहला जाता है
ओस की निर्मल बूंदें बनकर
सांसो को नहला जाता है

तुम ही हो अब तो कह दो ना
तन्हा एक अहसास रहो ना