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Saturday, August 26, 2006

गुलमोहर

गुलमोहर

गुलमोहर की शाखों ने फिर
झूम के मन में ठान लिया
क्षितिज पे झुक कर अम्बर ने लो
श् वेत श्याम पट तान दिया

उचक के फूलों की सासों ने
खुले गगन पर कुछ लिख डाला
निष्ठामय घुल गीत गज़ल सा
पिया लगन का अतुल उजाला

शब्द शब्द में एक चिंगारी
स्पंदन और मधुर आकर्षण
गुलमोहर ने रंग बिखेरा
लाज में लिपटा सा अपनापन

नित्य तुम्हीं हो तुम ही तुम हो
पर कुछ बदला बदला सा है
सोच समझ को छोङ गया जो
मुग्ध हृदय ही पगला सा है

फिर फिर जीवन में आते हैं
गुलमोहर और पीपल मौसम
नया बंसत उमङ आता है
पात पात में बसता है मन