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Thursday, March 23, 2006

महक

कुछ पुराना लिखा यहाँ भी

महक

ऍसा होता है ये जुनूँ क्यूँकर
जैसे हम तुझपे अब भी मरते हों
इश्क की मस्तियों में भीगे हुए
तेरे खत पहली बार पढते हों

तेरी आगोश में यूँही छुप कर
रूठे रहने का ढोंग करते हों
लब शिकवे गिले लाखों
मान जाने की चाह करते हों

नींद आती नहीं है जब तुझ बिन
रोज रातों की बात करते हों
आँख बंद करको हम हथेली से
तेरे ख्वाबों की राह तकते हों

तेरे हाथों की उंगलियों की तरह
जैसे सीने पे फूल खिलते हों
तेरी नजरों की हर शरारत से
सोये अरमान जैसे जगते हों

तेरे होंठों सो मेरी पलकों पर
गर्म कोई नशा पिघलता हो
तेरी सांसों की महक छूने से
बहका बहका बदन ये जलता हो

ऍसा होता है ये जुनूँ क्यूँकर

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