Lekhnee

Hindi me blogging ka mera prayas.

Tuesday, April 04, 2006

उनके भी पंख होते


दायरों में बंधकर
मूरत जो बन गये हैं
मानिन्द तितलियों के
उनके भी पंख होते


चरमराते दरवाजे
हौले से टोकते हैं
खोये हैं जो भीङों में
सपनों में नहीं खोते

3.
माथे पे झूमर संवरा
लहरा तुम्हारा आँचल
ममुस्काओ खुश्बुओं सी
यूँ फूल नहीं रोते


जिन्दगी का परदा
खुल जायेगा दोबारा
अभिनय कई हैं करने
हैं पात्र छोटे मोटे


इन खोखली दीवारों
के कान रिस रहे हैं
सुनकर ये दिल के किस्से
खामोश यूँ न सोते

0 Comments:

Post a Comment

<< Home