कुछ पुराना लिखा यहाँ भी
महक
ऍसा होता है ये जुनूँ क्यूँकर
जैसे हम तुझपे अब भी मरते हों
इश्क की मस्तियों में भीगे हुए
तेरे खत पहली बार पढते हों
तेरी आगोश में यूँही छुप कर
रूठे रहने का ढोंग करते हों
लब शिकवे गिले लाखों
मान जाने की चाह करते हों
नींद आती नहीं है जब तुझ बिन
रोज रातों की बात करते हों
आँख बंद करको हम हथेली से
तेरे ख्वाबों की राह तकते हों
तेरे हाथों की उंगलियों की तरह
जैसे सीने पे फूल खिलते हों
तेरी नजरों की हर शरारत से
सोये अरमान जैसे जगते हों
तेरे होंठों सो मेरी पलकों पर
गर्म कोई नशा पिघलता हो
तेरी सांसों की महक छूने से
बहका बहका बदन ये जलता हो
ऍसा होता है ये जुनूँ क्यूँकर
No comments:
Post a Comment